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विश्वभर में मानव सभ्यता का सबसे पुराना ज्ञान है ‘‘भारतीय वैदिक ज्योतिष ’’
भारतीय वैदिक ज्योतिष द्वारा मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन की वर्तमान, भूत व भविष्य में होने वाली शुभ या अशुभ घटनाओं को जाना जा सकता है । मनुष्य के जन्म के समय पर उस शहर या स्थान के आकाशीय ग्रहों की स्थिति के आधार पर भारत में 5000 वर्षों से भी अधिक समय से आजतक निरंतर ज्योतिष की गणनाओं के आधार पर भविष्य कथन किया जाता आ रहा है ।
भारतीय वैदिक ज्योतिष का इतिहास विश्व में सबसे ज्यादा प्राचीन है। वेद मानव इतिहास के सबसे प्राचीन लिखित ग्रंथ हैं जो कि यह प्रमाणित करते हैं कि भारत की ज्ञान परम्परा और उसका इतिहास सबसे अधिक प्राचीन हैं। मानव सभ्यता का विकास सबसे पहले यहीं हुआ और विकसित भी हुआ। आज भी उस ज्ञान की प्रासंगिकता ज्यों कि त्यों बरकरार है।
भारतीय मनीषियों ने ग्रहों, नक्षत्रों, ब्रह्माण्ड के विस्तार का बारीकी से अध्ययन कर सभी ज्योतिषीय गणनाओं को पंचांग के रूप में प्रस्तुत किया।
ब्रह्माण्ड के ग्रह, नक्षत्र किस तरह मानव पर प्रभाव डालते हैं ?
सबसे पहले भारतीय मनीषियों ने ब्रह्माण्ड के अनन्त विस्तार को 12 विभागों में विभक्त किया है, जिनको हम राशियाँ कहते हैं। ये 12 राशियाँ पृथ्वि से देखे जाने वाले ब्रह्माण्ड के विस्तार का एक तय डिग्री का हिस्सा हैं। इन 12 राशियों के भी 28 विभाग किए गए हैं जिनको नक्षत्र कहते हैं। इन 28 नक्षत्रों को भी 4 -
सौर परिवार में मानव सभ्यता का विस्तार सिर्फ पृथ्वी पर ही हुआ; इसीलिए पृथ्वी को ही आधार मानकर सौर परिवार की स्थितियों का आंकलन किया गया। ग्रहों की गतियों, और पृथ्वी की अपने अक्ष या धूरि पर स्थित रहकर सूर्य के परिभ्रमण से उत्पन्न स्थितियों और इस भ्रमण के दौरान पृथ्वि के किस हिस्से से ब्रह्माण्ड का कौनसा हिस्सा दिखाई देगा ; इस आधार पर स्थानीय पंचांग की गणना की जाती है।
ग्रहों की इसी स्थानीय स्थिति का मानव जीवन पर जो प्रभाव देखने को मिलता है, इस गणना को हम फलित ज्योतिष कहा जाता है।
इस प्रकार जिज्ञासु भारतीय मनीषियों ने अपने सदियों के अनुभवों को और ज्ञान के हर सोपान को गूढ़ अर्थों के साथ वेदों के जरिए हमारे सामने प्रस्तुत किया था। जिससे आज तक मानव सभ्यता निरन्तर लाभान्वित हो रही है।
भारतीय वैदिक ज्योतिष के सिद्धान्त -
पृथ्वि के जिस क्षेत्र में व्यक्ति का जन्म जिस समय पर होता है उस समय और स्थान की ज्योतिषीय गणनाओं का पता लगाया जाता है। ब्रह्माण्ड की स्थितियों का विवेचन करके उस व्यक्ति की जन्मपत्री बनाई जाती है। जन्मपत्री में 12 स्थान निर्धारित होते हैं उसी में राशियों और ग्रहों की स्थितियों को बताया जाता है। इस प्रकार जन्मपत्री को जन्मकालीन समय की उस स्थान से दृश्यमान ग्रहों नक्षत्रों या उस स्थान को प्रभावित करने वाली ब्रह्माण्ड की स्थितियों का नक्शा कहा जा सकता है।
व्यक्ति के जन्मकालीन लग्न, नक्षत्र, ग्रह स्थिति व गति और राशियों में ग्रहों की स्थिति से उस व्यक्ति का बिताया हुआ जीवन, वर्तमान जीवन और उसका भविष्य तक सभी बताया जा सकता है। इसके लिए भारतीय वैदिक ज्योतिष के सभी सिद्धान्तों का बारीकी से अध्ययन किया जाना आवश्यक है।
भारतीय वैदिक ज्योतिष में सबसे ज्यादा बलवान ग्रह सूर्य को माना गया है; इसके बाद चन्द्रमा को। इसके बाद क्रमशः शुक्र, बृहस्पति, बुध, मंगल और शनि की क्षमताएं मानी गई हैं।
प्रत्यक्षतः भी देखा जा सकता है कि पृथ्वी के जन जीवन को सबसे ज्यादा सूर्य ही प्रभावित करता है। सूर्य की रश्मियों के बिना पृथ्वीलोक पर वनस्पति हो चाहे प्राणी जगत, किसी का भी जीवन संभव ही नहीं है। अतः सूर्य मानव जीवन को सभी परिप्रेक्ष्य में सबसे अधिक प्रभावित करने वाला ग्रह स्वयंसिद्ध है।
सूर्य के बाद चन्द्रमा पृथ्वीवासियों को प्रभावित करता है। अमावस्या, पूर्णिमा और सप्तमी अष्टमी को आने वाले समुद्री ज्वार चन्द्रमा के आकर्षण का ही परिणाम हैं। यही नहीं बल्कि दिन में एक बार समुद्र का जल स्तर आवश्यक रूप से बढ़ता है, जो कि चन्द्रमा और पृथ्वी की परस्पर गुरुत्वाकर्षण को सिद्ध करता है। यह प्रभाव पृथ्वी के सम्पूर्ण जलीयांश पर होता है, फिर वो भले ही समुद्र का जल हो या कि प्राणियों के शरीर का जलीयांश हो। मानवीय भावनाओं के ज्वार भी जन्मपत्री में चन्द्रमा की स्थिति पर ही निर्भर होते हैं। इसलिए सूर्य के बाद प्रत्यक्षतः चन्द्रमा मानव जीवन और उसके जीवन को प्रभावित करता है।
अन्य सभी ग्रह भी इसी प्रकार अपना अपना प्रभाव मानव जीवन पर डालते हैं।